भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहां आपको विभिन्न जाति, समुदाय, रंग, नस्ल के लोग मिलेंगे, यहां आपको विभिन्न तरह के मौसम मिलेंगे, विभिन्न तरह के त्योहार मिलेंगे और यहां आपको पर्वत, पठार, मैदान, समुद्र, सागर, झरने सब कुछ मिलेंगे,
यह जितने विशाल होते हैं उतने ही आकर्षक होते और साथ ही साथ उनके पीछे बहुत सारी रहस्य और इतिहास छिपे होते हैं।
आज हम आपको एक ऐसे पहाड़ के अंदर बने गुफा और उसके रहस्य के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में आप सुनकर चौक जाएंगे।
सोनभण्डार, राजगीर
सोन भंडार जितना नाम इसका आकर्षक यह इतिहास में उतना ही गहरा है।
आपको बताते चलें यहां तकरीबन 25 सौ वर्ष पुराना इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए हैं।
यह गुफा राजा बिंबिसार द्वारा बनाया गया है ऐसा इतिहास में वर्णित है।
सोनभंडार का इतिहास -
सोन भंडार बिहार ही नहीं बल्कि भारत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में गिना जाने वाला स्थान है।
यह विश्व धरोहर के रूप में भी घोषित हो चुका है।
बात करें इसकी इतिहास की तो यह दिखने में जितना भव्य है उसका इतिहास उतना ही पुराना और भव्य है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह गुफा राजा बिंबिसार के काल में बनाया गया था,
आपको बताते चलें कि जब राजा बिंबिसार को उसके ही पुत्र अजातशत्रु ने राज सिंहासन प्राप्त करने हेतु उसकी हत्या कर दी तब अजातशत्रु की मां ने खजाना का बहुत बड़ा हिस्सा इसी गुफा के अंदर में छुपा दिया था।
यह लोगों द्वारा कही गई कहानी है, * जब हम सोनभंडार में मौजूद गाइड से जानकारी ली तो हमें पता चला कि सोन भंडार का वास्ता किसी सोने या खजाने से नहीं बल्कि बात कुछ और थी।
यह बात सुनकर हमारे पैरों तले से जमीन खिसक चुकी थी।
साथ ही साथ घूमने आए पर्यटक भी गाइड की बात सुनकर सन्न रह गए थे, कहीं ना कहीं उनके भी मन में सोनभंडार को लेकर किसी खजाने का जुड़ाव रहा होगा,
जब हमने गाइड से पूरी जानकारी लेने की कोशिश की तो पता चला कि सोन का मतलब सोना नहीं बल्कि सुरंग होता है,
और इस सोन के साथ भंडार का जुड़ना भंडार होता है।
स्वर्ण भंडार के इतिहास के जितने नजदीक हम जा रहे थे उसकी इतिहास उतनी ही पेचीदी होती जा रही थी।
मगर गाइड ने हमें पूरी जानकारी सही तरीके से और विस्तृत रूप से दी।
उन्होंने बताया कि यह गुफा मौर्य वंश काल का है और इसमेंं एक तपस्वी रहा करते थे और तपस्या साधना पूजा किया करते थे।
जब अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार को मारना चाहा तो उनकी माता चेलमा ने अपने राज्य के बहुत सारा खजाना इसी तपस्वी को दे दिया और रक्षा की गुहाई करने लगी।
तब उस तपस्वी ने सारा खजाना उसे सुरंगों में छुपाकर एक बड़े से पत्थर से उसका दरवाजा बंद कर दिया और मंत्रों से उसे बंद कर दिया जो आज तक किसी के द्वारा नहीं खोल जा सका है।
सोनभंडार का बनावट
सोनभंडार पहाड़ को काटकर बनाया गया सुरंगों का एक भंडार है,
इसमें दो कमरे हैं एक में बताया जाता है कि स्वर्ण है दूसरे रूम को गार्ड रूम भी कहा जाता है।
पहले कमरे की लंबाई लगभग 50 फुट और वही लंबाई तकरीबन 20 फुट रही होगी।
दूसरा रूम इसके अपेक्षा छोटा है।
पूरा कमरा पत्थरों से ही बनाया हुआ है और आपको बताते चलें कि यह एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया है।
साथ ही साथ एक ढाई फुट का खिड़की भी बनाया गया है,
गुफा के ठीक पीछे सुंदर सी पहाड़ियां आपको देखने को मिल जाएगी जो की अति विशाल भी है, और उसके बाएं तरफ आप नेचर सफारी, ग्लास ब्रिज, जरासंध का अखाड़ा है।
सोनभंडार का आधुनिक इतिहास -
सोन भंडार सुरंगों का बहुत ही पुराना भंडार है, अभी और यहां पर बहुत ही प्रतापी राजाओं द्वारा शासन किया गया था किंतु समय के साथ साथ इतिहास ने करवट ली और धीरे-धीरे इसकी वैभव खत्म होने लगी।
सबसे बड़ा क्षति इसे 1834 के भूकंप में हुआ है और बहुत भारी नुकसान हुआ और साथ ही साथ बहुत ही साथ जमीन के अंदर धंस गया था।
अट्ठारह सौ 61 या 62 के समय लॉर्ड कलिंगा द्वारा सोनभंडार को फिर से खुदवाया गया और उसे इसे फिर से पुराना गौरव दिलवाया गया किंतु अंग्रेजों को उसकी इतिहास से कोई मतलब नहीं था उन्हें तो बस इसके अंदर छिपे खजाने की चाहत थी।
जब अंग्रेजों का पता चला कि इस गुफा में बहुत सारे खजाने हो सकते हैं तब अंग्रेजों ने इसे तोड़कर इसके अंदर के खजाने को प्राप्त करने की भरपूर कोशिश की किंतु यह गुफा के अंदर ना कोई जा सका ना इसे कोई तोड़ सका,
फिर अंग्रेजों ने इसे विस्फोटक पदार्थ से उड़ाने की एक आखरी कोशिश करनी चाहिए पर वैज्ञानिकों ने बताया कि यहां पहाड़ फास्फोरस से संबंध रखता है अगर इसे तोड़ा गया बम से तो पूरा शहर बर्बाद हो सकता है।
फिर अंग्रेजों ने अपने लालच का चोला फाड़ वापस चले आए खाली हाथ।
सोनभंडार का धार्मिक इतिहास
सोन भंडार का संबंध सुरंगों और खदानों से नहीं बल्कि धर्म ऋषि-मुनियों से है।
इस गुफा के अंदर मैं आपको बौद्ध, जैन धर्मों के अनुयायियों के मूर्तियां बनाई गई है,
काफी मूर्तियां क्षतिग्रस्त हो गई और कुछ मूर्तियों को राजगीर के ही संग्रहालय में संग्रहित कर के रखा गया है।
स्वर्ण भंडार में मूर्तियों के साथ-साथ एक और चीज है जो हमें बहुत ही हैरान किया है, स्वर्ण भंडार के गुफाओं में हमने देखा कि वहां पर कुछ ऐसे लिपि में लिखे हुए थे जिसे हम नहीं पढ़ पाए और आसपास किसी ने भी इसे पढ़ने की हिम्मत या ज्ञान नहीं हमें दिखाई।
गाइड ने हमें बताया कि यह शंख लिपि है और यह नालंदा विश्वविद्यालय के पतन के बाद इस लिपि की पतन हो गए क्योंकि नालंदा के पुस्तकालय में इस लिपि की पुस्तकें थी जिसे बख्तियार खिलजी ने जला दिया था।
दावा यह किया जाता है कि जो भी विद्वान इस गुफा पर लिखे हुए लिपि को पढ़ लेगा तो यह दरवाजा खुल जाएगा और खजाने का मालिक भी बन जाएगा, पर अफसोस इस लिपि की पढ़ाई ना हो पाई जिसके वजह से इसके ज्ञाता संभवत आधुनिक दुनिया में मौजूद नहीं है।
सोनभंडार तक पहुंचने का मार्ग-
सोनभंडार बिहार राज्य के पटना से 100 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है ,
इसका नजदीकी एयरपोर्ट पटना एयरपोर्ट है।
यहां आप पर रेलगाड़ी से भी आ सकते हैं किंतु इसके लिए आपको पहले पटना रेलवे स्टेशन पर पहुंचना होगा।
अगर आप पटना पहुंचकर ट्रेन लेते हैं तो राजगीर स्टेशन पर ट्रेन आपको डेढ़ घंटे के अंदर में पहुंचा देगी।
वहां से आप टेंपू या टमटम करके जा सकते हैं स्वर्ण भंडार,
स्वर्ण भंडार का रास्ता बहुत ही आसान है आप राजगीर पहुंचते ही वहां के ड्राइवर और टांगे वाले आपको बहुत ही सहजता और सम्मान के साथ और बहुत ही कम लागत पर घुमा देंगे पूरा राजगीर।
इतिहास की अजब गजब स्वर्ण भंडार का यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके बताइए और लोगों तक साझा करें इस आर्टिकल को,
अपने सुझाव और परामर्श हमें कमेंट के माध्यम से भेजें और हमारे यूट्यूब चैनल रॉयल यात्रा पर विजिट करें जहां पर आपको सारी जानकारी वीडियो के रूप में मिल जाएगी।
सोनभण्डार की कुछ अद्भुत तस्वीर -
![]() |
चट्टान की मजबूती एवम सुंदरता. |
![]() |
बाहरी दृश्य. |
(लेखन -Gautam Raaz)
0 Comments